Hajari Prasad Dwivedi ka sahityik parichay hindi mein

  आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी आजीवन साहित्य साधना में लगे रहे। इन्होंने अनेक उत्कृष्ट कृतियों का सृजन किया। उपन्यास, निबंध आदि गद्द की कई विधाओं पर इन्होंने अनेक भावपूर्ण रचनाएं भी दी।

Hajari Prasad Dwivedi ka sahityik parichay hindi me

Hajari Prasad Dwivedi ka sahityik parichay

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का जन्म 1907 ईस्वी में बलिया जिले के दुबे का छपरा नामक ग्राम में हुआ था। यह अपनी शिक्षा समाप्ति के उपरांत शांतिनिकेतन चले गए और वहां के हिंदी विभाग में शिक्षण का कार्य करने लगे। यही यह रविंद्र नाथ ठाकुर और क्षितिमोहन सेन के संपर्क में आए और उनकी प्रेरणा से साहित्य सृजन की ओर अभिमुख हुए।

         आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी में मौलिक रूप से साहित्य सृजन करने की योग्यता बाल्यकाल से ही विद्वान थे इन्होंने अपने बालिका में ही व्योमकेश शास्त्री से कविता लिखने की कला सीखनां प्रारंभ कर दी। धीरे-धीरे साहित्य जगत इनकी इलेक्शन सृजन प्रतिभा से परिचित होने।

      इनपर कविंद्र रविंद्र का गहन प्रभाव पड़ा। यह बांग्ला साहित्य से भी बहुत प्रभावित थे। उनकी बहुमुखी साहित्यिक प्रतिभा विभिन्न क्षेत्रों में प्रकट हुई यह उच्च कोटि के शोधकर्ता निबंधकार, उपन्यासकार और आलोचक थे।

Hajari Prasad Dwivedi ke aword

हिंदी साहित्य जगत के जाने पहचाने हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने अपनी कला से बहुत से पुरस्कार भी हासिल किए हैं। सन 1949 ईस्वी में लखनऊ विश्वविद्यालय से साहित्य के क्षेत्र में उनकी महान सेवाओं के लिए डि०लिट० तथा सन् 1957  ईसवी में भारत सरकार से पदमभूषण की उपाधि से विभूषित किया गया।

         हजारी प्रसाद द्विवेदी उत्तर प्रदेश ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष और हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष भी रहे हैं। इनकी सुप्रसिद्ध कीर्ति कबीर पर इन्हें मंगला प्रसाद पारितोषिक तथा सूर साहित्य पर इंदौर साहित्य समिति से स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ। 1979 ई० में एक लंबी बीमारी के कारण इनका स्वर्गवास हो गया।


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