Munshi Premchand ka sahityak Parichay Hindi mein
दोस्तों मुंशी प्रेमचंद्र जी ने उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में प्रत्येक वर्ग के पाठक को मंत्रमुग्ध कर देने वाले उपन्यास साहित्य का सृजन किया इसलिए इन्हें उपन्यास सम्राट की उपाधि प्राप्त है।
प्रेमचंद जी में साहित्य सृजन की जन्मजात प्रतिभा विद्वान थे आरंभ में यह नवाब राय के नाम से उर्दू भाषा में कहानियां और उपन्यास लिखा करते थे
Munshi Premchand ka sahityak Parichay
दोस्तों मुंशी प्रेमचंद जी ने साहित्यिक जीवन में प्रवेश करने पर सर्वप्रथम मर्यादा पत्रिका के संपादक का कार्य किया। डेढ़ वर्ष के पश्चात संपादन कार्य छोड़कर एक काशी विद्यापीठ में चले आए और यहां प्रधान अध्यापक नियुक्त हुए। इस पद पर भी यह अधिक दिनों तक ना रह सके कुछ दिनों बाद इन्होंने माधुरी पत्रिका का संपादन अपने हाथों में ले लिया माधुरी पत्रिका का संपादन करते हुए इन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में भाग लिया इसके बाद काशी में अपना प्रेस खोला और हंस तथा जागरण नामक पत्र निकाल कर उनका संपादन करने लगे। इन पत्रों के प्रकाशन में बहुत आर्थिक क्षति उठानी पड़ी इसलिए उन्होंने मुंबई में ₹8000 वार्षिक वेतन पर एक फिल्म कंपनी में नौकरी कर ली।
Munshi Premchand ki rachnay
प्रेमचंद जी में साहित्य सृजन की जन्मजात प्रतिभा विद्वान थी सन 1915 ईस्वी में इन्होंने महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा पर प्रेमचंद नाम धारण करके हिंदी साहित्य जगत में पदार्पण किया प्रेमचंद जी ने सतत रूप से साहित्य साधना की और अपने साहित्य सृजन काल में लगभग एक दर्जन प्रयास और 300 कहानियों की रचना की जैसे-:
निबंध- संग्रह-: कुछ विचार
संपादित -: गल्प रत्न और गल्प-समुच्चय
अनुदित -: अहंकार, सुखदास, आजाद कथा, चांदी की डिबिया, टॉलस्टॉय की कहानियां और सृष्टि का आरंभ
Munshi Premchand ke upanyas
कर्मभूमि, कायाकल्प, निर्मला, प्रतिज्ञा, प्रेमाश्रम, वरदान, सेवा सदन, रंगभूमि, गवन, गोदान और मंगलसूत्र ।
नाटक -: कर्बला, प्रेम की वेदी, संग्राम और रूठी रानी ।
जीवन चरित्र -: कलम, तलवार और त्याग, दुर्गादास, महात्मा शेखसादी और राम चर्चा ।
प्रेमचंद्र जी की भाषा के दो रूप हैं एक रूप तो वह है जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता है। और दूसरा रूप वह है जिसमें उर्दू संस्कृत और हिंदी के व्यवहारिक शब्दों का प्रयोग किया गया है। यही भाषा प्रेमचंद जी की निधि भाषा है इसी भाषा का प्रयोग इन्होंने अपनी श्रेष्ठ कृतियों में क
किया है। यह भाषा अधिक सजीव और प्रवाहमयी है।
मुंशी प्रेमचंद जी की शैलियां
इनकी शैलियां कुछ इस प्रकार है जैसे-:
वर्णनात्मक शैली -: किसी पात्र वस्तु घटना आदि का वर्णन करते हुए इस शैली को प्रयुक्त किया गया है।
विवेचनात्मक शैली -: प्रेमचंद जी ने अपनी गंभीर विचारों को व्यक्त करने के लिए विवेचनात्मक शैली को अपनाया ।
मनोवैज्ञानिक शैली -: प्रेमचंद्र जी ने मन के भावों तथा पात्रों के मन में उत्पन्न अंतर विद्वानों को चित्रित करने के लिए इस शैली का प्रयोग किया ।
हास्य व्यंग्यात्मक शैली -: सामाजिक विषमताओं का चित्रण करते समय इस शैली का प्रभाव पूर्ण प्रयोग किया गया है ।
भावात्मक शैली -: काव्यात्मक था एवं अलंकारिकता पर आधारित इनकी इस शैली के अंतर्गत मानव जीवन से संबंधित विभिन्न भावनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है ।
दोस्तों मुंशी प्रेमचंद जी का हिंदी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान है हम उनके योगदान को कभी भुला नहीं सकते दोस्तों उनकी एक लंबी बीमारी के कारण 1936 में मृत्यु हो गई थी।
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